भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति बदलते वक्त पंडित की आंखों में बांध दी जाती है पट्टी, जानिए इसका पौराणिक कारण

भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति बदलते वक्त पंडित की आंखों में बांध दी जाती है पट्टी, जानिए इसका पौराणिक कारण

आज से जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। जगन्नाथ मंदिर को लेकर काफी रहस्य है। ऐसे ही जगन्नाथ जी की मूर्ति बदलते समय आखिर क्यों पंडित की आंखों में बांधा जाती है पट्टी। जानिए वजह

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलना शुरू होता है। ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से तीन सजे-धजे रथ निकलते हैं। जिसमें भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ निकलता है। इस भव्य यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग मौजूद रहते हैं। जगन्नाथ मंदिर लेकर काफी अधिक रहस्य है जिनके बारे में लोग समय-समय में सुनते रहते हैं। इन्हूीं रहस्यों में से एक है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बदलते समय पंडित अपनी आंखों में पट्टी बांधे हुए होता है। जानिए इसके पीछे का कारण।

इस कारण पुजारी बांधते हैं आंखों में पट्टी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म मानव रूप में हुए था। ऐसे में एक मानव का जन्म हुआ है, तो मृत्यु अवश्य होगी। ऐसे में जब भगवान कृष्ण की मृत्यु हुई, तो पांडवों से विधिवत तरीके से उनका दाह संस्कार किया था। लेकिन दाह संस्कार के समय एक चमत्कार हुआ। श्री कृष्ण का पूरा शरीर को पंचतत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका हृदय फिर भी धड़क रहा था। माना जाता है कि यहीं हृदय आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में उपस्थिति है।

माना जाता है कि श्री कृष्ण के हृदय को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है। ऐसे में परंपरा के अनुसार, हर 12 साल में जगन्नाथ की मूर्ति परिवर्तित की जाती है, तो बहुत सारे नियमों का पालन किया जाता है। ऐसे में वह ब्रह्म पदार्थ नई मूर्ति में लगाया जाता है।

नई मूर्ति में ब्रह्म पदार्थ लगाते समय आसपास की जगह पर अंधेरा कर दिया जाता है। इसके साथ जो पंडित इस कार्य को करता है उसकी आंखों में भी पट्टी बांध दी जाती है। माना जाता है इस रस्म के दौरान अगर पंडित ने उसे ब्रह्म पदार्थ को देख लिया, तो उसकी मृत्यु अवश्य हो जाती है। इस अनुष्ठान को नव कलेवर नाम से जाना जाता है।

क्या है नव कलेवर अनुष्ठान?

नव कलेवर अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्ति रखी जाती है। इस अनुष्ठान का आयोजन सिर्फ अधिक महीने में ही होता है। यह संयोग 12 या 19 वर्षों में एक ही बार आता है।

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